कश्यप सन्देश

20 October 2025

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छठ महापर्व की शुरुआत : काशी का सूरजकुण्ड़ सूर्योपासना का सर्वश्रेष्ठ स्थल

लेखक-ई. रामवृक्ष, वाराणसी (मो. 9616233399)

वाराणसी। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला छठ महापर्व सूर्योपासना का अद्वितीय और वैदिक पर्व माना जाता है। बिहार राज्य से लेकर पूर्वी उत्तर प्रदेश तक यह पर्व विशेष उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता रहा है। समय के साथ अब यह पर्व वैश्विक रूप धारण कर चुका है। भारत ही नहीं, विदेशों में बसे प्रवासी भारतीय भी आज पूरे भक्तिभाव से छठ महापर्व का आयोजन करते हैं।

माता सीता से प्रारम्भ हुई परंपरा

ऐतिहासिक मान्यताओं के अनुसार इस महापर्व की शुरुआत बिहार राज्य के मुंगेर से हुई थी। कहा जाता है कि माता सीता जी ने रावण वध के पश्चात् पापमुक्ति हेतु गंगा तट स्थित महर्षि मुद्गल के आश्रम में सूर्यदेव और षष्ठी देवी की आराधना की थी। यही आराधना कालांतर में छठव्रत के रूप में प्रसिद्ध हुई।

एक अन्य कथा के अनुसार, राजा प्रियव्रत और रानी मालिनी ने सन्तान प्राप्ति की इच्छा से महर्षि कश्यप की सलाह पर सूर्यदेव एवं षष्ठी देवी की पूजा की थी। वहीं महाभारत काल में सूर्यपुत्र कर्ण द्वारा सूर्योपासना को छठ पर्व के रूप में प्रारम्भ करने की भी मान्यता प्रचलित है।

षष्ठी मैया — सन्तान प्राप्ति की देवी

पौराणिक कथाओं में षष्ठी देवी को ब्रह्मा जी की मानस पुत्री तथा सूर्यदेव की बहन माना गया है। इन्हें सन्तान प्राप्ति की देवी के रूप में पूजा जाता है। यह पर्व केवल उपासना नहीं, बल्कि आस्था, तप और निष्ठा का अद्भुत संगम है। व्रती महिलाएं 36 घंटे तक निर्जला उपवास रखती हैं और सच्चे मन से पूजा-अर्चना करने पर हर मनोकामना पूर्ण होती है।

काशी का सूरजकुण्ड़ — विश्व प्रसिद्ध तीर्थ

छठ पर्व के अवसर पर वाराणसी स्थित सूरजकुण्ड़ और सूर्य मंदिर का विशेष महत्व है। यह स्थल सूर्योपासना का विश्व प्रसिद्ध केंद्र माना जाता है। भौतिक दृष्टि से भी देखा जाए तो छठ के दिनों में इस स्थल पर सूर्य का प्रकाश सर्वाधिक तीव्रता से पड़ता है। वैज्ञानिक रूप से इस दिन परा-बैंगनी किरणों का प्रभाव इस स्थान पर न्यूनतम रहता है।

किंवदंती है कि भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र सांब को कुष्ठ रोग हो गया था। सूर्यदेव की आराधना से रोगमुक्त होने के बाद उन्होंने ही सूरजकुण्ड़ का निर्माण कराया था। बाद में गहड़वाल वंशी क्षत्रिय राजाओं ने 11वीं शताब्दी में इसका जीर्णोद्धार कराया।

स्नान से मिलता है रोगमुक्ति का वरदान

लोकमान्यता है कि सूरजकुण्ड़ में सूर्यप्रकाश के समय स्नान करने से कुष्ठ रोग जैसे असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है। काशी में होने के कारण इसका आध्यात्मिक प्रभाव तो है ही, साथ ही सूर्य की किरणों का घनत्व इस समय सबसे अधिक होता है। जब ये किरणें जल से परावर्तित होकर शरीर को स्पर्श करती हैं, तो उनमें निहित ऊर्जा शरीर को नई चेतना प्रदान करती है।

इस प्रकार काशी का सूरजकुण्ड़, सूर्योपासना का विश्व प्रसिद्ध स्थल होने के साथ-साथ आस्था और विज्ञान का अनूठा संगम है। छठ महापर्व के अवसर पर यहां श्रद्धालुओं की उपस्थिति इस पावन स्थल की महत्ता को और बढ़ा देती है।

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