प्राचीन कथाओं में गणेश के सिर के कट जाने के बाद हाथी का सिर उनके धड़ पर जोड़ दिया गया था। इस घटना को प्राचीन काल की सर्जरी कहा जाए या फिर एक चमत्कार, यह विचारणीय है। तर्कशील विद्वानों के लिए इस पर चिंतन की आवश्यकता है।
दूसरी तरफ, महाभारत के प्रसंग में, जब एकलव्य का अंगूठा द्रोणाचार्य द्वारा मांगा गया और काट दिया गया, तो क्यों किसी प्राचीन सर्जन या चमत्कारिक धर्मगुरु ने उसका अंगूठा वापस जोड़ने का प्रयास नहीं किया? यह प्रश्न उतना ही पुराना है जितनी हमारी संस्कृति, और इससे जुड़े मुद्दे आज भी हमारे समाज में प्रासंगिक हैं।
वर्तमान समय में, हमारे समाज में अनेक बुद्धिजीवी उभर चुके हैं, जो स्थानीय अदालतों से लेकर उच्चतम न्यायालय तक में वकालत करते हैं। इन बुद्धिजीवियों और समाज सेवकों को एक पिटीशन दायर करनी चाहिए कि जो ‘द्रोणाचार्य पुरस्कार’ राज्यों की सरकार और केंद्र की सरकार देती है, उसे समाप्त कर देना चाहिए। इसका कारण यह है कि हमारे समाज के ब्राह्मण कथावाचक और धर्मगुरु द्रोणाचार्य की निंदा करने का साहस क्यों नहीं कर पाते हैं?
रामानंद सागर द्वारा निर्मित ‘रामायण’ में निषादराज की वेशभूषा पर भी चिंतन आवश्यक है। इसमें हमारे समाज के आराध्य भगवान निषादराज को जिस वस्त्र परिधान में दिखाया गया है, वह हमारी आस्था, संस्कृति, और सभ्यता को अपमानित करने का प्रयास प्रतीत होता है। रामायण में निषादराज को तलवार और धनुष-बाण के स्थान पर भाला दिया गया है, जो उनके राजसी स्वरूप के अनुकूल नहीं है।
हमारे समाज के बुद्धिजीवियों को इस पर विचार करना चाहिए और इस मुद्दे को भी अदालत में चुनौती दी जानी चाहिए कि हमारे आराध्य को जिस प्रकार से दर्शाया गया है, वह हमारी संस्कृति का अपमान है।
इस विषय पर सामाजिक न्याय की लड़ाई अब केवल राजनीतिज्ञों और समाज सेवकों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए। मान-सम्मान और स्वाभिमान के साथ समाज के गौरव को पुनर्स्थापित करने के लिए इस मुद्दे पर गहन चिंतन आवश्यक है।
यह व्यक्तिगत विचार हो सकते हैं, लेकिन यह समय की मांग है कि हम इन विषयों पर गंभीरता से विचार करें और उचित कार्रवाई करें।