

लेखक – ईं. रामवृक्ष, सिविल इंजीनियर, वाराणसी
मो. 9616233399
वाराणसी, काशी या बनारस – यह वह पावन नगरी है जिसे स्वयं भगवान शिव की नगरी कहा जाता है। यहाँ की जीवनधारा गंगा माँ के तट पर बने 84 घाट केवल स्थापत्य कला के अद्भुत उदाहरण ही नहीं हैं, बल्कि ये मानव जीवन के 84 लाख योनियों का प्रतीक भी माने जाते हैं। प्रत्येक घाट की अपनी एक कथा, एक आस्था और एक पौराणिक महिमा है। इन समस्त घाटों का वर्णन कर पाना दुरूह एवं श्रमसाध्य कार्य है, अतः यहाँ कुछ प्रमुख, धार्मिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण घाटों का वर्णन प्रस्तुत है।
- मणिकर्णिका घाट – मोक्षधाम का शाश्वत दीप
मणिकर्णिका घाट काशी का सबसे प्राचीन एवं विश्व प्रसिद्ध घाट है। इसका निर्माण संभवतः सन् 1600 ईस्वी में राजा मानसिंह द्वारा कराया गया था।
यह घाट निरंतर जलती चिता के कारण महाश्मशान के रूप में प्रसिद्ध है।
किंवदंती है कि भगवान विष्णु ने यहाँ तपस्या करते हुए अपने सुदर्शन चक्र से एक कुंड खोदा था। तप से निकले स्वेद (पसीने) से वह कुंड भर गया और उसी में विष्णु जी की मणिकर्णिका (कर्णाभूषण) गिर गई।
एक अन्य कथा के अनुसार, भगवती पार्वती के स्नान करते समय उनकी मणिकर्णिका उसी कुंड में गिरी थी। इसीलिए इस घाट का नाम मणिकर्णिका घाट पड़ा।
यहाँ मृत्यु को मोक्ष का द्वार माना गया है, और चिरंतन अग्नि के कारण यह स्थान अनादि काल से मुक्तिक्षेत्र के रूप में श्रद्धेय है।
- हरिश्चंद्र घाट – सत्य और तप का प्रतीक
यह घाट सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के नाम पर प्रसिद्ध है। कथा के अनुसार, उन्होंने सत्य की रक्षा हेतु अपना सब कुछ त्याग दिया और काशी में डोमराजा कालू के यहाँ कार्य किया।
राजा हरिश्चंद्र ने इसी घाट पर शवों के दाह संस्कार का कार्य किया, जिससे यह घाट हरिश्चंद्र घाट कहलाया।
वर्तमान में यहाँ विद्युत शवदाह गृह का निर्माण राज्य सरकार द्वारा कराया गया है, जिससे समय और संसाधनों की बचत होती है। यह घाट सत्य, त्याग और धर्म की अदम्य शक्ति का प्रतीक है।
- अस्सी घाट – गंगा आरती का दिव्य स्थल
अस्सी नदी (वर्तमान अस्सी नाला) और गंगा के संगम स्थल पर स्थित यह घाट काशी का सबसे जीवंत और लोकप्रिय घाट है।
यहाँ प्रतिदिन सायंकाल भव्य गंगा आरती आयोजित की जाती है, जो श्रद्धालुओं और पर्यटकों दोनों के लिए दिव्य अनुभव होता है।
यह घाट धार्मिक अनुष्ठानों, साधना और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी प्रमुख केंद्र है।
- तुलसी घाट – भक्ति और साहित्य का तीर्थ
यह घाट संत कवि गोस्वामी तुलसीदास जी की तपस्थली है। यहीं पर उन्होंने श्रीरामचरितमानस जैसे अमर ग्रंथ की रचना की थी।
तुलसी घाट पर आज भी राम भक्ति की मधुर ध्वनियाँ गूंजती हैं। यहाँ प्रतिदिन धार्मिक अनुष्ठान और पाठ आयोजन होते रहते हैं।
यह घाट साहित्य, धर्म और संस्कृति – तीनों का संगम है।
- दशाश्वमेध घाट – यज्ञभूमि का गौरव
काशी का सबसे प्रसिद्ध और प्राचीन घाट, दशाश्वमेध घाट है।
कहा जाता है कि यहाँ भगवान ब्रह्मा ने दस अश्वमेध यज्ञ संपन्न किए थे, जिससे इसका नाम दशाश्वमेध घाट पड़ा।
यहाँ श्रद्धालु स्नान, दान और पूजा-अर्चना करते हैं। इसी घाट पर गंगा आरती का दृश्य मन को मोह लेने वाला होता है।
- पंचगंगा घाट – पंचतीर्थ का संगम
यह घाट पाँच अदृश्य नदियों — गंगा, यमुना, सरस्वती, किरणा और धूतपापा — के संगम स्थल पर स्थित है।
इसी कारण इसे पंचतीर्थ कहा गया है।
संत कबीरदास और उनके गुरु स्वामी रामानंद जी की दीक्षा स्थली होने से यह घाट और भी पवित्र माना जाता है।
यह स्थल भक्तिमार्ग और संत परंपरा का अमूल्य धरोहर है।
- आदि केशव घाट – काशी का प्रारंभिक तीर्थ
यह घाट गंगा और वरुणा के संगम पर, काशी के उत्तरी छोर पर स्थित है।
किंवदंती है कि यहाँ भगवान विष्णु स्वयं पधारे थे और उन्होंने विष्णु मंदिर की स्थापना की थी।
यह स्थल आदि केशव तीर्थ कहलाता है और स्नान, दान, ध्यान तथा ध्यान-साधना के लिए अत्यंत शुभ माना गया है।
यहाँ वरुणा नदी गंगा में मिलकर पूर्णतः गंगा स्वरूप धारण कर लेती है।
अन्य उल्लेखनीय घाट
काशी के 84 प्राचीन घाटों के अतिरिक्त आधुनिक काल में छह नये घाटों का निर्माण हुआ है। इनमें
राजेन्द्र प्रसाद घाट, जो भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के नाम पर है,
तथा माँ ललिता देवी घाट, जो अपनी प्राकृतिक सौंदर्य और आस्था के कारण प्रसिद्ध है, प्रमुख हैं।
प्रत्येक घाट का अपना अलग आकर्षण, इतिहास और आध्यात्मिक वातावरण है।
काशी : अनादि मोक्षभूमि
दुनिया के किसी भी नगर में किसी एक नदी के किनारे इतने विशाल, सुन्दर और जीवंत घाट नहीं हैं जितने काशी में हैं।
यहाँ की घाट संस्कृति, श्रद्धा, कर्मकाण्ड और कला का अद्भुत संगम है।
कहा जाता है – “कई जन्मों के पुण्य से काशी-वास का अवसर मिलता है।”
यह नगर स्वयं भगवान शिव के सान्निध्य में स्थित है — जहाँ मृत्यु भी मुक्ति का उत्सव बन जाती है।

