
अशोक सिद्धार्थ की वापसी, बीएसपी की आंतरिक राजनीति और2027-29 की तैयारी
🔹 अशोक सिद्धार्थ की वापसी : संकेत और संदेश
अशोक सिद्धार्थ, जो कभी बीएसपी के वरिष्ठ चेहरों और राज्यसभा सांसद रह चुके हैं, कुछ महीने पहले पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में बाहर कर दिए गए थे। लेकिन अब उनकी माफ़ी और वापसी ने साफ कर दिया है कि बीएसपी नेतृत्व पुराने नेताओं को भी वापसी का मौका दे रहा है, बशर्ते वे मायावती और संगठनात्मक लाइन पर काम करने के लिए तैयार हों।


👉 यह कदम बीएसपी कार्यकर्ताओं को यह संदेश भी देता है कि पार्टी में अनुशासन सर्वोपरि है, लेकिन गलती सुधारने वालों के लिए दरवाज़े बंद नहीं हैं।
🔹 आकाश आनंद फैक्टर


अशोक सिद्धार्थ, आकाश आनंद के ससुर हैं। हाल ही में आकाश आनंद को दोबारा राष्ट्रीय समन्वयक बनाया गया है।
उनकी वापसी को पार्टी में आकाश आनंद की बढ़ती ताकत और निर्णायक भूमिका से भी जोड़ा जा रहा है।
मायावती धीरे-धीरे आकाश को आगे लाकर नई पीढ़ी का चेहरा गढ़ रही हैं।
सिद्धार्थ की वापसी बताती है कि अब संगठनात्मक फैसले आंशिक रूप से आकाश के प्रभाव में भी लिए जा रहे हैं।
🔹 बीएसपी की 2027 और 2029 की रणनीति
2022 और 2024 के चुनावी नतीजों से बीएसपी को झटका लगा। अब पार्टी पुनर्गठन और नए सामाजिक समीकरण पर काम कर रही है।
- अनुशासन और एकजुटता – अशोक सिद्धार्थ जैसे पुराने नेताओं की वापसी से पार्टी दिखाना चाहती है कि सभी पुराने कार्यकर्ताओं को एक मंच पर लाया जाएगा।
- नवीन नेतृत्व + पुराना अनुभव – आकाश आनंद जैसे युवा चेहरे और अशोक सिद्धार्थ जैसे वरिष्ठों का संतुलन, 2027 विधानसभा और 2029 लोकसभा चुनाव में महत्वपूर्ण हो सकता है।
- दलित + पिछड़ा समीकरण – बीएसपी अपने पारंपरिक दलित वोट बैंक के साथ-साथ निषाद, कश्यप, लोधी, बिन्द जैसे पिछड़े वर्गों पर भी फोकस कर रही है।
- कांग्रेस और सपा को चुनौती – यूपी की राजनीति में बीएसपी चाहती है कि 2027 तक वह फिर से “तीसरी ताकत” बने, और 2029 में दलित-पिछड़ा वर्ग का मजबूत ध्रुवीकरण उसके पक्ष में हो।
निष्कर्ष
अशोक सिद्धार्थ की वापसी केवल एक नेता की घर वापसी नहीं है, बल्कि यह संकेत है कि बीएसपी अब अनुशासन, एकजुटता और नई-पुरानी पीढ़ी के मेल की रणनीति पर आगे बढ़ रही है।
यह कदम आकाश आनंद की पारिवारिक मजबूती और राजनीतिक स्वीकार्यता दोनों को बढ़ाता है।
साथ ही, यह 2027-29 की तैयारियों में मायावती का पहला संकेत है कि पार्टी आंतरिक टूट-फूट से उबरकर बड़े चुनावी समीकरणों पर ध्यान केंद्रित कर रही है।