दिल्ली की एक अदालत ने आज नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रमुख नेता और सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को आपराधिक मानहानि के एक मामले में दोषी ठहराया है। यह मामला एक प्रख्यात व्यवसायी द्वारा दर्ज किया गया था, जिसने पाटकर पर उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया था। अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि पाटकर के सार्वजनिक बयान और लेखन ने व्यवसायी की छवि को धूमिल किया और उनके व्यवसाय को नुकसान पहुंचाया।
अदालत ने कहा कि पाटकर ने जो बयान दिए थे, वे आधारहीन और अपमानजनक थे, जिससे व्यवसायी की प्रतिष्ठा को गंभीर क्षति हुई। अदालत ने अपने फैसले में यह भी कहा कि सार्वजनिक जीवन में रहने वाले व्यक्तियों को अपनी जिम्मेदारियों का ध्यान रखना चाहिए और किसी के खिलाफ सार्वजनिक रूप से आरोप लगाने से पहले ठोस प्रमाण प्रस्तुत करने चाहिए।
मेधा पाटकर ने अपने बचाव में कहा कि उनके बयान किसी भी तरह से मानहानिपूर्ण नहीं थे और वे केवल सामाजिक न्याय के लिए उठाई गई आवाज थे। उन्होंने कहा कि वह अदालत के इस फैसले से निराश हैं और इसे उच्च न्यायालय में चुनौती देंगी।
इस मामले ने सामाजिक कार्यकर्ताओं और मानवाधिकार संगठनों के बीच एक नई बहस छेड़ दी है। कई संगठनों ने पाटकर के समर्थन में आवाज उठाई है, यह कहते हुए कि यह फैसला सामाजिक कार्यकर्ताओं की आवाज़ को दबाने की कोशिश है।
आगे की कानूनी कार्रवाई के लिए पाटकर की टीम उच्च न्यायालय में अपील करने की तैयारी कर रही है। इस घटनाक्रम पर सभी की नजरें टिकी हुई हैं, क्योंकि यह मामला सामाजिक न्याय और मानहानि कानूनों के बीच संतुलन पर एक महत्वपूर्ण दृष्टांत प्रस्तुत करता है।