
बिहार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया रैली में अपेक्षित जनसमर्थन नहीं दिखाई दिया। रिपोर्टों के अनुसार, स्थानीय प्रशासन और पार्टी नेताओं को भीड़ जुटाने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाना पड़ा। जब भीड़ स्वेच्छा से नहीं आई, तो कथित तौर पर आंगनवाड़ी सेविकाओं को सरकारी बसों में भरकर रैली स्थल तक लाया गया।
आंगनवाड़ी सेविकाओं का कहना है कि वे इस रैली में अपनी इच्छा से नहीं आईं, बल्कि उन्हें जबरन लाया गया और कहा गया कि “आम जनता बनकर रैली में बैठो।”
इस स्थिति के पीछे राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव और वीआईपी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुकेश साहनी के आह्वान का भी असर माना जा रहा है। दोनों नेताओं ने अपने-अपने समाज और समर्थकों से अपील की थी कि वे मोदी की रैली में शामिल न हों। यह रणनीति सफल होती दिखी, क्योंकि रैली में अपेक्षित जनसैलाब नजर नहीं आया। हालांकि इस वीडियो का आपका अपना अखबार कश्यप संदेश पुष्टि नहीं करता। हालात ऐसे हुए तो आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा और नीतीश कुमार को नए समीकरण के साथ मैदान में उतरना होगा


राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह घटनाक्रम बिहार की बदलती राजनीति और सामाजिक समीकरणों की ओर इशारा करता है, जहाँ केंद्र सरकार की लोकप्रियता को अब चुनौती मिल रही है, खासकर पिछड़े, दलित और अति पिछड़े वर्गों में।
हालांकि प्रधानमंत्री ने बिहार को 48520 अड़तालिस हजार पांच सौ बीस करोड़ का विभिन्न परियोजनाओं की विकास कार्यों के लिए दिया जिसमें क़ृषि, शिक्षा, सड़क, महत्वपूर्ण कार्य योजनाएं शामिल है