बाबा मोती राम मेहरा का जन्म 9 फरवरी 1677 को एक साधारण और धार्मिक परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम हरा राम जी था, जो पेशे से एक रसोइए थे, और माता का नाम लोधो जी था। बचपन से ही बाबा मोती राम मेहरा के जीवन में संस्कार, धर्म और सेवा का विशेष स्थान था। अपने पिता के साथ काम करते हुए, उन्होंने रसोई के काम में निपुणता प्राप्त की और अपने व्यवसाय में कुशल हो गए।
बाबा मोती राम मेहरा बचपन से ही एक समझदार, जिम्मेदार और निष्ठावान बालक थे। उन्होंने अपने पिता की सहायता करते हुए रसोई के काम को बखूबी सीखा। उनके अनुशासन और मेहनत के चलते, जब वे 17 वर्ष के हुए, तो उन्हें सरहिंद के किले के कैदखाने में रसोई का काम करने का अवसर मिला।
यह वह दौर था जब मुगल शासन अपने चरम पर था और सरहिंद का नवाब, वजीर खान, एक निर्दयी और अत्याचारी शासक के रूप में कुख्यात था। उस समय की सबसे दुखद घटनाओं में से एक यह थी कि वजीर खान ने गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादे, बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह को गिरफ्तार कर लिया था। उनके साथ उनकी दादी, माता गुजरी जी भी कैद में थीं। वजीर खान ने इन्हें भूखा-प्यासा रखने का क्रूर आदेश दिया ताकि वे अपने धर्म से विचलित हो जाएं और झुक जाएं।
इस अमानवीय स्थिति ने बाबा मोती राम मेहरा के दिल को गहराई से झकझोर दिया। उन्होंने अपने मन में यह ठान लिया कि चाहे जो हो, वे इन मासूम साहिबजादों और माता गुजरी जी की भूख और प्यास को दूर करने की कोशिश करेंगे। बाबा मोती राम मेहरा ने साहस और धर्म की राह चुनी और हर रोज़ सरहिंद के किले में बड़ी सावधानी से दूध ले जाकर साहिबजादों और माता गुजरी जी की सेवा करने लगे।
यह कार्य बेहद जोखिमभरा था क्योंकि वजीर खान ने सख्त आदेश दिए थे कि कोई भी कैदियों की मदद नहीं करेगा। लेकिन बाबा मोती राम मेहरा ने बिना किसी भय के, सेवा और धर्म के प्रति अपनी निष्ठा को बरकरार रखा। वे निरंतर साहिबजादों और माता गुजरी जी के लिए दूध पहुंचाते रहे, यह जानते हुए भी कि यदि उनका यह कार्य उजागर हो गया, तो उनके जीवन को खतरा हो सकता है।
एक दिन, वजीर खान को पता चल गया कि बाबा मोती राम मेहरा कैदियों की मदद कर रहे हैं। उन्हें तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर अत्याचार किए गए। वजीर खान ने उन्हें अपने धर्म से पलटने और सिख धर्म को छोड़ने का प्रस्ताव दिया, परंतु बाबा मोती राम मेहरा ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया। उन्होंने अपने धर्म और अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठा दिखाई और अत्याचार सहते हुए भी अपनी सेवा जारी रखी।
अंततः, बाबा मोती राम मेहरा और उनके परिवार को क्रूरता से शहीद कर दिया गया। उन्हें आरे से चीर दिया गया, लेकिन उन्होंने धर्म के मार्ग को कभी नहीं छोड़ा। उनके इस महान बलिदान को सिख धर्म के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। बाबा मोती राम मेहरा को आज भी एक महान शहीद और सेवक के रूप में याद किया जाता है, जिनकी निष्ठा और साहस की गाथा सदैव प्रेरणादायक रहेगी।
बाबा मोती राम मेहरा का जीवन हमें यह सिखाता है कि सेवा, धर्म और निष्ठा का मार्ग सबसे कठिन होते हुए भी सबसे ऊंचा होता है। उनका बलिदान अमर है, और उनकी कथा हर पीढ़ी को धर्म और सेवा के प्रति समर्पण की प्रेरणा देती रहेगी।