कश्यप सन्देश

4 December 2024

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आदिवासी: सभ्यता के आदि निवासी :बाबू बलदेव सिंह गोंड की कलम से

सोंधिया (मछुआरों) का इतिहास और उत्पत्ति : बाबू बलदेव सिंह गौड़ की कलम से

मछुआरों की एक विशेष शाखा, जो आज समाज में “सोंधिया” नाम से जानी जाती है, अपने वंश को “सिंधिया” से जोड़कर देखती है। आमतौर पर इस समुदाय के लोग अपने गोत्र के आधार पर ही “सोंधिया” नाम का प्रयोग करते हैं। इस समुदाय के बुजुर्गों से बातचीत करने पर यह पता चलता है कि मूलतः उनका वंश “सिंधिया” था, लेकिन राज सत्ता से दूर हो जाने और शिक्षा के अभाव में, समय के साथ यह “सिंधिया” शब्द “सोंधिया” में बदल गया।

शाब्दिक दृष्टि से देखा जाए तो “सोंधिया” शब्द “सिंधिया” का ही परिवर्तित रूप प्रतीत होता है। आर्य समाज की सामाजिक क्रांति के बाद इस समुदाय के लोगों में अपने इतिहास की छानबीन करने का विचार आया, जिससे उन्हें अपने इतिहास की कुछ विशिष्ट जानकारी प्राप्त हुई। इस प्रक्रिया में उन्होंने पुराणों, महाभारत, अंग्रेजों द्वारा लिखी गई ऐतिहासिक पुस्तकों और भारत सरकार द्वारा समय-समय पर प्रकाशित गजट का अध्ययन किया। इनमें से एक प्रमुख पुस्तक “भारत की जातियां” है, जो कर्नल टॉड द्वारा लिखी गई थी। इस पुस्तक में भी “घ” के स्थान पर “ध” का प्रयोग किया गया, जिससे “सिंधिया” का रूपांतर “सोंधिया” के रूप में होने लगा।

ऐतिहासिक दृष्टि से, “सिंधिया” का अर्थ वीर पुरुषों से जोड़ा गया है। यदि इसे “सिंध” से उत्पन्न माना जाए, तो यह नाम सिंधु घाटी सभ्यता से भी संबंध स्थापित करता है। सिंधु सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक रही है, और इस समुदाय का अतीत में उस सभ्यता से संबंध रहा है।

संपूर्ण इतिहास को विस्तृत रूप से समझने के लिए इस पर एक बड़ी पुस्तक लिखी जा सकती है। वर्तमान समय में यह समझना उचित है कि “सिंधिया” या “सोंधिया” नाम इस वीर समाज का प्रतीक है, जो पहले राजनैतिक सत्ता में प्रतिष्ठित थे लेकिन सामाजिक परिवर्तन के प्रभाव से आज देश के विभिन्न भागों में फैले हुए हैं।

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