माझी या माझवर का संबोधन आदिवासी समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है। ‘माझी’ शब्द का अर्थ ‘मध्यस्थ’ होता है, जो इस बात का संकेत है कि माझी लोग दो पक्षों के बीच मध्यस्थता करने वाले माने जाते थे। इनकी भूमिका को समझने के लिए हमें प्राचीन काल के सामाजिक ढांचे को समझना होगा, जहां माझी का कार्य राजाओं या शासकों के मध्य संवाद स्थापित करना होता था। यह मध्यस्थता सम्मानजनक मानी जाती थी, क्योंकि इसे वही व्यक्ति कर सकता था जो सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हो और उसकी बात शासक वर्ग में सम्मान के साथ सुनी जाती हो।
ऐतिहासिक पुस्तकों और लोकगाथाओं में उल्लेख मिलता है कि माझी लोग युद्ध और संघर्ष के बाद सामंजस्य स्थापित करने की कोशिश करते थे। ऐसा माना जाता है कि माझी शब्द का प्रचलन युद्धोपरांत के समय से अधिक हुआ, जब यह आदिवासी नेता जनता और शासक वर्ग के बीच के संवाद का माध्यम बनते थे।
माझावर शब्द का संबंध आदिवासी समाज की उस भूमिका से है जो सरकार और आम जनता के बीच संवाद स्थापित करता था। इनका कार्य न केवल दो राज्यों के बीच सीमाओं और अधिकारों को लेकर समाधान करना था, बल्कि समाज में शांति और सामंजस्य बनाए रखना भी था। इसी कारण माझी समाज में एक उच्च सम्मान के पद पर माने जाते थे।