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निषाद वंशी सम्राट कृष्णदेव राय, विजयनगर साम्राज्य के सबसे महान शासकों में से एक माने जाते हैं। उनका जन्म 16 फरवरी 1471 ईस्वी में हुआ था और उन्होंने 1509 से 1529 ईस्वी तक सफलतापूर्वक शासन किया। विजयनगर साम्राज्य, जो 1350 ईस्वी से 1565 ईस्वी तक फला-फूला, कृष्णदेव राय के शासनकाल में अपनी शक्ति और वैभव के चरम पर पहुंचा। वे एक कुशल निपुण शासक, प्रतिभाशाली कवि, और विद्वान थे।
सम्राट कृष्णदेव राय ने विजयनगर साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार किया और उसे दक्षिण भारत के सबसे शक्तिशाली साम्राज्यों में से एक बना दिया। भारत में विजयनगर साम्राज्य की प्रतिष्ठा मगध और उज्जैनी के साम्राज्यों के बराबर थी। उनके शासन की ख्याति उत्तर भारत के महान सम्राटों जैसे चित्रगुप्त मौर्य, पुष्यमित्र, चंद्रगुप्त, विक्रमादित्य, स्कंद गुप्त, हर्षवर्धन, और महाराजा भोज से किसी भी प्रकार कम नहीं थी। जिस प्रकार उत्तर भारत में महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी महाराज, बाजीराव, और पृथ्वीराज सिंह चौहान ने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया, उसी प्रकार दक्षिण भारत में राजा कृष्णदेव राय और उनके पूर्वजों ने भी मातृभूमि की रक्षा और सम्मान के लिए अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया।
कन्नड़ भाषी क्षेत्र में जन्मे इस महान निषाद वंशी सम्राट ने तेलुगु भाषा में ‘अमुक्त माल्यद’ या ‘विष्वुवितीय’ जैसे महान ग्रंथों की रचना की। इसके अतिरिक्त, उन्होंने संस्कृत में ‘जाम्बवती कल्याण’, ‘परिणय’, ‘सकलकथासार-संग्रहम’, ‘मदारसाचरित्र’, और ‘सत्यवधू-परिणय’ जैसे साहित्यिक कृतियों की भी रचना की। उनके दरबार में तेनालीराम जैसे बुद्धिमान दरबारी थे, जो नवरत्नों में से एक थे और जिनकी कहानियां आज भी मशहूर हैं।
सम्राट कृष्णदेव राय का साम्राज्य अरब सागर से बंगाल की खाड़ी तक विस्तृत था, जिसमें आज के कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल, गोवा, और उड़ीसा प्रदेश शामिल थे। उनके राज्य की सीमाएं पूर्व में विशाखापट्टनम, पश्चिम में कोंकण, और दक्षिण में भारतीय प्रायद्वीप के अंतिम छोर तक पहुंची हुई थीं। हिंद महासागर के कुछ द्वीप भी उनके आधिपत्य को मान्यता देते थे।
कृष्णदेव राय के शासनकाल में जनता हर तरह से खुशहाल थी और उन्हें लोकनायक के रूप में पूजा जाता था। उन्होंने आक्रांताओं द्वारा नष्ट किए गए या खंडहर में बदल चुके प्राचीन मंदिरों का जीर्णोद्धार किया और नए मंदिरों का निर्माण भी करवाया। उनके मंदिर निर्माण के फलस्वरूप विजयनगर स्थापत्य शैली का प्रचलन हुआ। उन्होंने विजयनगर में भव्य राम मंदिर और हजार खम्भों वाले मंदिर का भी निर्माण कराया।
सम्राट कृष्णदेव राय स्वयं विष्णु भक्त थे और उनके धार्मिक होने के कारण उन्होंने मंदिर कला को प्रोत्साहन दिया। अपने जीवनकाल में लगातार युद्धों में विजय प्राप्त करने के कारण वे लोक कथाओं के नायक बन गए और उनके पराक्रम की कहानियां जनमानस में प्रचलित हो गईं।
सम्राट कृष्णदेव राय निषाद वंश का वह गौरव थे जिन्होंने न केवल अपने राज्य को समृद्ध और सुरक्षित रखा, बल्कि उसे संस्कृति और कला के क्षेत्र में भी उत्कृष्ट बनाया। उनका जीवन और उनका शासन भारतीय इतिहास में सदैव स्मरणीय रहेगा।