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3 December 2024

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आदिवासी: सभ्यता के आदि निवासी :बाबू बलदेव सिंह गोंड की कलम से

गोंडी या गोंड साम्राज्य का इतिहास :पूर्व इंजीनियर रामवृक्ष की कलम से

गोंडी या गोंड जातिके लोग पहले जो खुद को कोइतुर कहते थे,भारत में बहुत पहले से रहते आ रहे हैं, उनकी मूल भाषा गोंडी, द्रविड़ परिवार से संबंधित है, वे मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, बिहार और उड़ीसा अधिराज्यों में फैले हुए हैं,वे भारत की आरक्षण प्रणाली के उद्देश्य से अनुसूचित जनजाति के रूप में (एस,टी) सूचिबद्ध हैं। इनकी भारत के विभिन्न राज्यों में जनसंख्या निम्नानुसार है।मध्यप्रदेश में ५०९३१२४, छत्तीसगढ़ में ४२९८४०४, महाराष्ट्र में १६१८०९०, उत्तर प्रदेश में ५६९०५५उडीसामे८८८५८१, आंध्र प्रदेश में ३०४५३७, बिहार में २५६७३८, कर्नाटक में १५८२४३, झारखंड में ५३६७६, पश्चिम बंगाल में १३५३५, गुजरात में २९६५है।गोंडो ने ऐतिहासिक महत्व के कई साम्राज्यों का गठन किया १४वीं सदी से भारत के गोंडवाना क्षेत्र में शासक साम्राज्य था, इसमें महाराष्ट्र के विदर्भ का पूर्वी भाग शामिल हैं। गढ़ा साम्राज्य में इसके‌ ठीक उत्तर में मध्यप्रदेश के हिस्से और पश्चिमी छत्तीसगढ़ के हिस्से शामिल हैं।ऊपर गोंड जाति की जिस संख्या का‌‌ उल्लेख किया गया है,वह२०११की जनगणना पर आधारित है। वैसे गोड़ों का पहला ऐतिहासिक संदर्भ १४वींशताबदी के मुस्लिम लेख में मिलता है। विद्वानों का मत है कि गोंडो ने १३वींसे लेकर१९वीं शताब्दी तक गोंडवाना पर शासन किया था,जो वर्तमान में पूर्वी मध्य प्रदेश से लेकर पश्चिमी उड़ीसा तक‌और उत्तरी आंध्र प्रदेश से लेकर उत्तर प्रदेश के दक्षिण-पूर्व दिशा तक फैला हुआ है।१९१६मे गोडवाना के विभिन्न हिस्सों में गोंडी बुद्धि जीवियों में गोंडी संस्कृति के बढ़ते बाहरी प्रभाव से बचाने के लिए गोंड महासभा का आयोजन किया गया। गोंड राजा राजपूतों और मुगलों से प्रभावित होकर सिंह याशाह जैसी उपाधियों का इस्तेमाल करने लगे थे,गौंड को राजगोंडनाम से मध्यप्रदेश में जाना जाता है।२०५०ख
के दशक में इस शब्द कि व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने लगा। गोंड लोगों में जो उल्लेखनीय लोग रहें हैं, उनके नाम निम्नानुसार हैं।,कोमारामभीम, स्वतंत्रता सेनानी, गुड़ा धुर, आदिवासी नेता, रामजी गोंड आदिवासी विकास मुखिया, आशा गोंड स्केट बोर्डर, हृदयशाह, गढ़ा के राजा,अजानबाहु जाटवाशा, देवगढ़ राजगढ़ राजवंश के गोंड संस्थापक। मोती रावण कंगाली,लेखक और भाषा विद, कनकराजू, नर्तक। दलपतशाह, गढ़ा साम्राज्य के ४९वेंशासक, रघुनाथ शाह, स्वतंत्रता सेनानी। संग्राम शाह, गढ़ा के राजा।शंकर शाह, स्वतंत्रता सेनानी।आदि। रानी दुर्गावती,५अकटूबर१५२४से२४जून१५६४तकगोडवाना की रानी थीं, उन्होंने गोंडवाना केराजादलपत शाहसेविवाह किया था, अपने बेटे वीर नारायण के नाबालिग होने के दौरान १५५०से१५६४तकगोडवाना की रीजेंट केरूप में काम किया था, तथा इसी झंझावात के‌दौरान अकबर से उनकी लड़ाई हुई।अकबर कुछ शर्तों के साथ इनसे समझौता चाह‌ रहा था, लेकिन उन‌ शर्तों के माननें से इन्होंने इंकार कर दिया, तथा मुगलों केखिलाफ लड़ते हुए पराजित न होने की दशा में इन्होंने ख़ुद ही अपनी तलवार अपने सीने में घुसा दिया,और शहीद होग ई।इस तरह२४जून १५६४को गोंडवाना की‌रानी का अंत हुआ, जिसे शहादत दिवस या बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता है। रानी दुर्गावती का नाम इतिहास में महानतम वीरांगनाओं की अग्रिम पंक्ति में दर्ज किया जाता है। वैसे तो गोंडवाना का‌ लंबा इतिहास है, परंतु लेखक ने बहुत ही संक्षेप में गोंडवाना पर प्रकाश डालने की कोशिश की है। और गोंडवाना आदि वासियों के चर्चित नामों का भी उल्लेख यथासंभव ऊपरकी पंक्तियों में किया है।
लेखक, रामवृक्ष, भूतपूर्व इंजीनियर उत्तर प्रदेश। वाराणसी

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