जिसमे हर्ष विषाद नहीं है,,उसका नाम निषाद है।
पावन मानव का शरीर ही,शिवमय परम प्रसाद है।
देव, दनुज, मानव, दानव,ऋषि कश्यप की है संतानें,
दिति, अदिति दो भेद भाव से,इनका जन्म हुआ जाने।
अविनाशी चैतन्य आत्मा,जीवन की बुनियाद है,
पावन मानव का शरीर ही,शिवमय परम प्रसाद है।
ऋषि कश्यप के अदिति तेज से ही ,बारह आदित्य प्रकट हुए,
दिति के अहंकार के कारण,ग्यारह रुद्र भी नित्य हुए।
अष्ट वसु, वसुधैव वसुंधरा प्राण हीअनहद नाद है,
पावन मानव का शरीर ही,शिवमय परम प्रसाद है।
पूर्व जन्म में नारद जी भी,दासी मां की थे संतान
मछुआरे से ज्ञान मिला,तो नारद हो गए ब्रह्म समान ।
जिसने सत्य के मर्म को जाना,वह ही नित आज़ाद है,
पावन मानव का शरीर ही,शिवमय परम प्रसाद है।
सर्दी-गर्मी, लाभ-हानि,सुख-दुख जीवन के हिस्से हैं,
स्वभावो के समीकरण हैं,काल कर्म के किस्से हैं।
विजय श्री उन्हे वरण करे,जिन्हें सत्य की महिमा याद है,
पावन मानव का शरीर ही,शिवमय परम प्रसाद है।
एक था राजा हिरण्यकश्यप,स्वयं को ईश्वर कहता था,
प्रजा हमें ही ईश्वर माने,मन ही मन वह चहता था।
जो असत्य का नहीं पुजारी,वह ही ध्रुव प्रह्लाद है,
पावन मानव का शरीर ही,शिवमय परम प्रसाद है।
रामराज या निषादराज हो,ज्ञान, विवेक, बुद्धि राजा है,
हृदय ही जिसका अवध-अयोध्या,उसमें राम विराजा है।
द्वेष द्वंद दुर्भाव रहित हो,जाना विधि मर्याद है,
पावन मानव का शरीर ही,शिवमय परम प्रसाद है।
सच्चाई के गर्भ से ही,अच्छाई पैदा होती है,
सच्चाई अच्छाई से,ना कभी अलहदा होती है।
समता, शांति, ज्ञान समरसता,सच्चिदानंद रस स्वाद है,
पावन मानव का शरीर ही,शिवमय परम प्रसाद है।
निषाद कन्या सत्यवती से,वेदव्यास अवतार हुआ,
वेद पुराण महाभारत ,सत् ग्रंथों का विस्तार हुआ।
जो चलता है सच्चे पथ पर,वह ही ज़िंदाबाद है,
पावन मानव का शरीर ही,शिवमय परम प्रसाद है।
द्रोणाचार्य को युद्ध कला,कौशलता का थाअद्भुत ज्ञान,
एकलव्य से मांग अंगूठा,गुरु का किया कलंकित मान।
अहंकार, अलगाव, अविद्या,जड़ता का परिवाद है,
पावन मानव का शरीर ही,शिवमय परम प्रसाद है।