निषाद वंश की महानता और गौरव धीरे-धीरे प्रकट हो रहे हैं। यह एक ऐसा रहस्य है जिसे कुछ गिने-चुने लोग ही जानते हैं। निषाद वंश का एक अद्भुत भक्त था, जो परमात्मा से अनन्य प्रेम करता था। यह भक्त सतयुग, त्रेता युग और द्वापर युग में भी प्रभु का अनन्य सेवक रहा। उसका नाम था केवट।
जब केवट का नाम लिया जाता है, तो उसका संपूर्ण चरित्र मानस पटल पर जीवंत हो उठता है। संत तुलसीदास जी महाराज ने अपने महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ में केवट और भगवान श्रीराम के संवाद का विस्तार से वर्णन किया है। यह संवाद ‘श्री राम-केवट संवाद’ के नाम से प्रसिद्ध है, और इसे किसी विशेष परिचय की आवश्यकता नहीं है। सतयुग में केवट का वर्णन संक्षेप में मिलता है, पर द्वापर युग में क्या हुआ, इसका विस्तृत वर्णन कहीं नहीं मिलता। हालांकि, एक चौपाई द्वारा इसका संकेत दिया गया है, परंतु उसका पूर्ण विवरण नहीं है।
केवट ने भगवान श्रीराम से कहा था, “हे प्रभु, जब आप अगले अवतार में अवतरित हों, तो जो भी आप बिना मांगे मुझे देंगे, मैं उसे आपका प्रसाद मानकर शिरोधार्य करूंगा।” सतयुग में यह केवट कश्यप था, त्रेता युग में केवट बना, और द्वापर युग में कृष्ण अवतार के समय यही केवट सुदामा के रूप में प्रभु से मिला।
कथा वाचक श्री महेश जी जोशी महाराज जी इस कथा का प्रमाणसहित उल्लेख करते हैं, और इसके माध्यम से निषाद वंश के इस भक्त की महानता का गुणगान करते हैं।