संपादक कश्यप सन्देश आर सी निषाद26 दिसम्बर -वीर बाल दिवस के रूप में इतिहास के पन्नों में
सिख धर्म के दसवें गुरु श्री गोबिंद सिंह जी ने साल 1699 में बैसाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना की थी। इनके चार बेटे अजीत सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह भी खालसा का हिस्सा थे। उस समय पंजाब में मुगलों का शासन था। साल 1705 में मुगलों ने गुरु गोबिंद सिंह जी को पकड़ने पर पूरा जोर लगा, जिसके कारण उन्हें अपने परिवार से अलग होना पड़ा। इसलिए गुरु गोबिंद सिंह जी की पत्नी माता गुजरी देवी और उनके दो छोटे पुत्र जोरावर सिंह और फतेह सिंह अपने रसोइए गंगू के साथ एक गुप्त स्थान पर छिप गईं।लेकिन लालच में आकर गंगू ने माता गुजरी और उनके पुत्रों को मुगलों को पकड़वा दिया। मुगलों ने इन पर खूब अत्याचार किए और उन्हें उनका धर्म परिवर्तन करने के लिए मजबूर करने लगे, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से साफ मना कर दिया। इस समय तक गुरु गोबिंद सिंह जी के दो बड़े पुत्र मुगलों के खिलाफ लड़ाई में शहीद हो चुके थे। अंत में मुगलों ने 26 दिसंबर के दिन बाबा जोरावर साहिब और बाबा फतेह साहिब को जिंदा दीवार में चुनवा दिया। उनकी सहादत की खबर सुनकर माता गुजरी ने भी अपने प्राण त्याग दिए।
गुरु गोबिंद सिंह जी के पुत्रों के इस बलिदान को याद करने के लिए साल 2022 में भारत सरकार ने हर साल 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस मनाने की घोषणा की।
साहस और बलिदान का प्रतीक– वीर बाल दिवस हमें साहस और बलिदान की कहानी याद दिलाता है। जोरावर सिंह और फतेह सिंह ने मुगल शासक के अत्याचारों का डटकर सामना किया और धर्म नहीं बदलने की कसम खाई।
धर्म के लिए निष्ठा– इन साहिबजादों ने अपनी जान की बाजी लगाकर धर्म के लिए निष्ठा का परिचय दिया। उन्होंने साबित किया कि धर्म केवल रस्मों-रिवाजों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है।
बचपन में ही बलिदान– साहिबजादा जोरावर सिंह की उम्र 9 वर्ष थी और फतेह सिंह की 6 वर्ष थी। इतनी कम उम्र में ही इन साहिबजादों ने अपने प्राणों का बलिदान दे दिया। इनका ये बलिदान इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में दर्ज हो चुका है। यह हमें प्रेरित करता है कि हम भी अपने जीवन में कठिनाइयों का सामना करते हुए धैर्य और दृढ़ता बनाए रखें।