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4 December 2024

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निषाद समाज: भारत में उनका सामाजिक एवं आर्थिक संघर्ष:राम सेवक निषाद की कलम से

निषाद समाज, जिसे मछुआरा समुदाय के नाम से भी जाना जाता है, भारत के प्राचीन और मूलनिवासी समुदायों में से एक है। इस समाज का इतिहास और संस्कृति एक समृद्ध धरोहर के रूप में विकसित हुए हैं। निषाद समाज का उल्लेख महाकाव्य रामायण और महाभारत में भी मिलता है, जहाँ यह समाज प्रमुख रूप से नदी किनारे बसने वाले और मछली मारने के कार्य में संलग्न रहने वाले लोगों के रूप में जाना जाता है।

निषाद समाज की उत्पत्ति और इतिहास

निषाद समाज की उत्पत्ति विंध्य पहाड़ियों के मध्य से मानी जाती है। एक पुरानी कथा के अनुसार, निषाद की एक बेटी जब अपने पति के घर जा रही थी, तो उसे रास्ते में एक नदी किनारे एक अप्सरा मिली। अप्सरा ने उसे मंत्रमुग्ध कर दिया और उसे चटाई बनाने की कला सिखाई। जब निषाद की बेटी ने चटाई बनाना सीख लिया, तो वह इस कला को अपने समुदाय में ले आई। इस प्रकार, निषाद समाज एक समूह के रूप में उभरा और समय के साथ यह समाज सात उप-समूहों में विभाजित हो गया, जैसे कि सुरैया, निषाद, कुलावत, मल्लाह, गुड़िया, केवट आदि।

भौगोलिक और सांस्कृतिक विस्तार

बिहार और उत्तर प्रदेश में निषाद समाज की विशेष रूप से महत्वपूर्ण उपस्थिति है। बिहार में, बिन्द जाति को Noniya जाति से उत्पन्न माना जाता है, जो जंगलों में भाग जाने के बाद बिन्द, Nunera और Beldar के रूप में पहचाने गए। उत्तर प्रदेश के बलिया, मिर्जापुर, भदोही, जौनपुर जिलों में यह समाज बहुसंख्यक है। बिन्द समाज की जनसंख्या लगभग एक करोड़ के आसपास है।

आर्थिक और सामाजिक स्थिति

निषाद समाज आर्थिक और सामाजिक रूप से काफी कमजोर है। भूमिहीनता के कारण यह समाज हमेशा से दूसरों पर निर्भर रहा है। शादी या अन्य बड़े आयोजन के समय इस समुदाय को अक्सर कर्ज लेना पड़ता है, जिसे चुकाने के लिए वे कठिन श्रम करने के लिए मजबूर होते हैं।

निषाद समाज के पारंपरिक कार्य, जैसे कि मछली मारना, आज धीरे-धीरे लुप्त हो रहे हैं। नदी और तालाबों का सूखना, और जल स्रोतों पर सावर्णों का अधिकार हो जाना, इस समाज के लिए गंभीर समस्या बन गई है। अब यह समाज मछली मारने के लिए ठेकेदारी प्रणाली पर निर्भर है, जहाँ उन्हें मछली पकड़ने के बदले में केवल मजदूरी मिलती है। भूमिहीन होने के कारण, निषाद समाज की महिलाएँ दूसरे के खेतों में मजदूरी करती हैं, और पुरुष भी अन्य कार्यों के लिए मजबूर हो गए हैं।

निषाद समाज के विकास के लिए आवश्यक है कि उनकी पारंपरिक धरोहरों और जीविकोपार्जन के साधनों को सुरक्षित किया जाए। सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्तिकरण की दिशा में ठोस प्रयास किए जाने चाहिए ताकि यह समाज अपनी पहचान और अस्तित्व को मजबूती से स्थापित कर सके। समाज के हर वर्ग को एक साथ मिलकर निषाद समाज के उत्थान के लिए काम करना होगा, जिससे उनकी समृद्धि और विकास सुनिश्चित हो

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